मनोरंजक कथाएँ >> गुलिवर की यात्राएं गुलिवर की यात्राएंश्रीकान्त व्यास
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जोनाथन स्विफ्ट का प्रसिद्ध उपन्यास गुलिवर्स ट्रैवल्स का सरल हिन्दी रूपान्तर....
Gulivar Ki Yatrayein A Hindi Book by Shrikant Vyas
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
गुलिवर की यात्राएं
मेरे पिता इंग्लैंड के नोटिंघमशायर नामक नगर में एक छोटे-से ज़मींदार थे। हम पाँच भाई थे। उनमें से मैं तीसरा था। चौदह साल की उम्र में मैं केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ने गया। तीन साल तक मैं मन लगाकर वहाँ पढ़ता रहा। लेकिन मेरे पिता अधिक दिनों तक मेरी पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सके, इसलिए मुझे पढा़ई छोड़कर लन्दन चला जाना पड़ा। वहां मैंने डाक्टरी का काम शुरू किया।
मैं अपना दवाख़ाना चलाता था। लेकिन काफी दिनों तक मुझें सफलता नहीं मिली। इसलिए मैंने एक जहाज़ पर डाक्टरी की नौकरी कर ली। दो-चार बार विदेश यात्रा करने के बाद मैं फिर से लन्दन लौट आया। इस बार शुरू में मेरा काम खूब चला लेकिन फिर बाद में मन्दा पड़ने लगा।
मैंने फिर से जहाज पर नौकरी करने का निश्चय किया। इसके बाद छः सालों तक मैं दो जहाज़ों पर डाक्टर का काम करता रहा। मैंने लम्बी-लम्बी यात्राएं कीं और काफी धन भी इकट्ठा किया।
लेकिन मेरी आखिरी यात्रा बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण रही। मैं ‘एण्टीलोप’ नामक जहाज़ पर डाक्टर था। हम लोगों ने 4 मई, सन् 1699 को ब्रिस्टल से यात्रा शुरू की। आरम्भ में हमारे दिन बड़े मज़े से बीते।
मैं अपना दवाख़ाना चलाता था। लेकिन काफी दिनों तक मुझें सफलता नहीं मिली। इसलिए मैंने एक जहाज़ पर डाक्टरी की नौकरी कर ली। दो-चार बार विदेश यात्रा करने के बाद मैं फिर से लन्दन लौट आया। इस बार शुरू में मेरा काम खूब चला लेकिन फिर बाद में मन्दा पड़ने लगा।
मैंने फिर से जहाज पर नौकरी करने का निश्चय किया। इसके बाद छः सालों तक मैं दो जहाज़ों पर डाक्टर का काम करता रहा। मैंने लम्बी-लम्बी यात्राएं कीं और काफी धन भी इकट्ठा किया।
लेकिन मेरी आखिरी यात्रा बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण रही। मैं ‘एण्टीलोप’ नामक जहाज़ पर डाक्टर था। हम लोगों ने 4 मई, सन् 1699 को ब्रिस्टल से यात्रा शुरू की। आरम्भ में हमारे दिन बड़े मज़े से बीते।
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